Monday, July 20, 2015

प्रिये मत जाइये परदेश





रुकिए प्रिये मत जाइये परदेश
क्या अच्छा नहीं है अपना देश

एक रोटी ही मिल बाँट खाएँगे
झोपड़ी में सकुन से सो जाएंगे
हँसी बच्चों की देख भूल जाएंगे
तूफ़ान से जब भी हम टकराएँगे
रुकिये ............
जो मुसीबत कभी घर में आएगी
देख खुशी हमारी लौट वो जाएगी
उसे भी होगी थोड़ा तरस हम पर
जब चौखट पर हमें साथ पाएगी
रुकिये ............
उन पैसों का ही तब क्या होगा
जो प्रियतम प्यार विहीन होगा
तरसेंगे बच्चे भी स्नेह को तब
मासूम चेहरा जब मलिन होगा
रुकिये ............
मैं बिरहन बन वन वन भटकुंगी
सबकी नजरों में तब मैं खटकुंगी
क्या आप चैन से तब रह पाएंगे
जब मर कर मैं हर पल जीऊंगी
रुकिये ............
रहा न कोई सिरचन संवादिया
कहेगा जो जाकर जीवन दुखिया
सूजी होगी मेरी दो दो अखिया
जग कर याद में दिन व रतिया
रुकिये ............
शृंगार विहीन अपना सावन होगा
होली दिवाली भी न आँगन होगा
झर - झर बरसेंगे आँसू नयन से
हर दिन तब ये सावन भादों होगा
रुकिये ............
“निर्भीक” बन जीवन हम जी लेंगे
गर हरदम आपका ही साथ होगा
छोड़िए जिद अब घर छोड़ने की
अपना घर ही अब से स्वर्ग होगा   

रुकिये प्रिये मत जाइये परदेश
क्या अच्छा नहीं है अपना देश

                        प्रकाश यादव “निर्भीक”
                  बड़ौदा – 06-07-2015

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