सुख दुःख दिन
रात है जीवन का
आना जाना तो
लगा ही रहता है
घबराना नहीं
अच्छा तम रात्रि में
सुहाना सहर
तो आता ही रहता है
कुछ पल ही
होता चुभन दिल में
मिली मंजिल
सकून ही रहता है
चला गया जो
फिर चिंता न कर
पाना खोना तो
लगा ही रहता है
बहती धारा कभी
रुकी कहाँ कब
ऊबड़ खाबड़ तो आता
ही रहता है
आग में तपकर
ही सोना चमकता
कोयला जलकर काला
ही रहता है
यही रीति है
जगत की “निर्भीक”
गुलाब संग तो
कांटा ही रहता है
प्रकाश यादव “निर्भीक”
11-07-2015
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