खिड़की से
छन छनकर आती है
रिमझिम बारिश की
वो छोटी छोटी बूंदें
मधुर ध्वनि लेकर,
जो आकर्षित कर लेती है
क्षणभर में अपनी ओर
किसी कामिनी की तरह,
जो अक्सर खींच लेती है
निगाह राहगीरों की
अपनी तरफ चलती हुई
अपने पायल के
रुन झुन स्वर से,
ठहर जाता है
उद्विग्न मन अचानक
बाहरी दुनिया की बिना
परवाह किए कि
देख लेने दो जीभर
बारिश को बरसते हुए
निहार लेने दो
कामिनी कंचन को
योंहि भींगकर चलते हुए
जो प्रकृति की
अनुपम देन है
इस धरती पर
सकुन देने के लिए
अन्तर्मन को
कुछ देर ही सही
दे जाती है ढेर सारी
उम्मीदें जीने की
हरियाली भरी मौसम में
जो मुरझा गई थी कभी
बारिश व कामिनी के
स्वाभाविक छुअन के
अभाव में .............
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 24-06-2015
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