इस जगत से रुखसत एक दिन
फिर उलझ कर है जीना क्यों
रहा नहीं कोई अमर जगत में
फिर स्वार्थी बनकर जीना क्यों
सुंदर गुलाब काँटों संग खिलते
फिर आहत से घबराना क्यों
मोहब्बत में है कुछ नहीं जाता
फिर दिल में नफरत लाना क्यों
किया नहीं जब कुछ जीवन रहते
तो फिर मरने पर पछताना क्यों
दिया शूल अगर कोई डगर में
फिर बदले भाव से जीना क्यों
जी ले जीभर दिल से “निर्भीक”
पश्चताप ले जग से जाना क्यों
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 21-05-2015
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