Wednesday, June 03, 2015

-: मासूम सवालों में :-



-: मासूम सवालों में :-

शाम को घर लौट कहाँ पाता
इस भाग दौड़ भरी ज़िंदगी में,
कि दीवारों में हंसी देख पाता
बच्चों के अद्भुत संजीदिगी में,

मशगूल हुए हम इस कदर
ऑफिस के बंद गलियारों में
क्या पता है स्वर्गिक सुख
वो उन्मुक्त किलकारियों में

हक छिना बचपन का उनका
सुबह व शाम कर बहानों में
क्या याद नहीं अपना बचपन
कैसे बीता कभी नादानों में

सुबह हुई तो शाम को कहना
रात गई अपनी थकानों में
जब जब मासूम चेहरा देखा
मायूस था वो अरमानों में

जहाँ चले व जिस डगर पर
भीड़ बढ़ी अब तो मैखानों में
कहाँ फुर्सत जीवन पथ पर
ले चले उसे कभी दुकानों में

मुक बधिर बनकर रहते अब
निःसहाय बन इन माहौलों में
भुला अब तो खुद को निर्भीक”
खोकर उन मासूम सवालों में

                                          प्रकाश यादव “निर्भीक”
                                          बड़ौदा – 27-05-2015

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