तेज धूप में
पसीना बहाते
हुये
पूस की रात
में
ठंड सहते
हुये
आषाढ़ की
बारिस में
भींगकर ठुठुरते
हुए
काम पर लगे
रहना
कभी उफ नहीं
करना
दिल के जज़्बात
को
चुपचाप सहते
हुए
होठों पे
हंसी लेकर
शाम का वो
दुलार
जो सारी कमी
को
अपने आप में
समेट लेता है
पलभर में
उम्मीद की
सतरंगी किरणें
जिगर के
टुकड़े के लिए
जहाँ मिले
उनको
जहां की वो
सारी खुशियाँ
जिनसे मरहूम
रहा वो
तेज धूप में
पूस की रात
में
आषाढ़ की
बारिस में
देख लेना
चाहता है
जीते जी अपने
से आगे
उस जगह पर
जहां फक्र हो
उसे
अपने आप पर
एक पिता होने
का
अपनी सूनी आँखों
से
देखता है वो
सपना
खुद को भूलकर
ताउम्र
सिर्फ अपने
बच्चों के बारे में...........
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 21-06-2015
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