Friday, June 19, 2015

-: छोटे से आँगन में :-





जी लेने दो, अब दो पल
गुलशन की ही साया में
धूप बहुत कड़ी है बाहर
इस दुनियाँ की माया में

चलते हुये तो देखा कोई
आया नहीं वो बगिया में
उम्मीद ले सोया पलभर
बगल में रखी खटिया में

वो मंजर वो हंसी ठिठोली
कहाँ है किसी चौपालों में
खुद में मस्त, पस्त सब
उलझे स्वयं के सवालों में

गुंजन कलरव चिड़ियों के
गायब सब है गोधूलि में
नाच नाचकर गाती टोली
मिलती कहाँ हमजोली में

चाचा चाची व फूफा ताऊ
सिमट गए अब किताबों में
फुर्सत कहाँ इन रिश्तों पर
व्यस्त है सब बेहिसाबों में

कहाँ पहुंचे भाग भाग कर
मोल नहीं कुछ जीवन में
आओ लौट चलो “निर्भीक”
अपने छोटे से आँगन में

                           प्रकाश यादव “निर्भीक”
                        बड़ौदा – 15-06-2015

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