झूठा कोई वादा मत करना
ये प्यार तेरा है मतलब का
दिल टूटा तो फिर टूट गया
कोमल हृदय अन्तर्मन का
हरियाली मंजर मत करना
खुश है हम अपनी बंजर में
ढहें है कितने ख्वाब महल
अरमानों के प्यारी आँचल में
तुम क्या जानो रीत प्रीत की
दिल में खंजर तेरी फितरत है
दगा दिया खुद अपनी वफा को
तेरी भोली सूरत की हरकत है
कुछ तो सीखों इस जगत से
देना ही बस जिसकी आदत है
वह जीवन ही किस काम का
जिसमें न प्रेम की इमारत है
कल कल बहती झरना देखो
कितनों की प्यास बुझाती है
मतलबी रिस्ता नहीं किसी से
निर्मल जल संग चलती है
क्षण भंगुर है अपना जीवन
तो क्यों कटुता का आँगन है
जी लो “निर्भीक” सा जीवन
जहां हृदय प्रेम का प्रांगण है
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बड़ौदा –
25-05-2015
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