Tuesday, June 30, 2015

-:सौम्य सूरत :-



   
बैठी हो तू ऐसे सजधज कर
सरसों खेत में हो पीली पहर
मधुर ये मुस्कान होंठों पर
लगे न किसी की कभी नजर

कंचन बदन काली जुल्फें तेरी
गाल पे तेरी ये तिल सुनहरी  
मधु टपकते मधुबन से फिर  
निगाह तो नहीं हटती है मेरी    

मधुशाला अपने साजन का
गुल है वो अपने गुलशन का
क्यों घूरता हूँ उनको मैं ऐसे
शान है वो अपने उपवन का

सौम्य सूरत व सुंदर काया
भँवरा मन फिर दौड़ा आया
पाकर उनकी शीतल छाया
लौटकर फिर घर को आया

सच्ची है मन की अच्छी है
दिल से बिलकुल बच्ची है  
देखता रहता तस्वीर उनकी
फिर भी न कुछ कहती है

चुप क्यों हो कुछ बोलो तो
लब अपना तुम खोलो तो
मूरत लगती हो चाहत की
अंतरपट अपना खोलो तो 

घायल व्यथित कोमल मन
व्याकुल रहता वो हरेक क्षण
मिले छाव गर कभी तुम्हारा
होगा धन्य “निर्भीक” जीवन  

                        प्रकाश यादव “निर्भीक”
                        बड़ौदा – 27-06-2015

No comments: