दिल
में दिल की बात घूंटता है
कहूँ
तो किससे आपको ढूँढता है
पनाह
न मिलती है मन को कहीं
हर
जगह निगाह आपको ढूँढता है
क्यों
ओझल हो गए इन आँखों से
आदतन
वश वही प्यार ढूँढता है
है
नहीं कोई विशाल हृदय आपसा
वो
सुकून भरा ठौर मन ढूँढता है
गुजर
जाता है दिन आपा धापी में
रात
को नींद भी आपको ढूँढता है
ये
कैसी रीत है जगत की “निर्भीक”
जो
न मुमकिन उन्ही को ढूँढता है
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 22-05-2015
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