Wednesday, June 03, 2015

-: दर्द के टुकड़े :-



-: दर्द के टुकड़े :-

जब दर्द के टुकड़े पिघलते है
ये अश्रु नयन से निकलते है

वो क्या जाने पीर जिगर का
जो अब दूर जाकर चमकते है

कैसे भूलूँ उनकी वो सब यादें
जो दिल में रहकर धड़कते है

जाने क्यों छोड़ वो चले गये
एक दरश को हम तड़पते है

बरवस खबर को जो आतुर
वो क्यों चुपचाप से रहते है

सुना है अपना घर आँगन
ये दीवारें भी अब दरकते है

कह गए कभी जो हँसके वो
उनकी बातें लबों पे रहते है

रह गई जो बातें अनकही
वो रह रह कर सिसकते है

अधूरी ख्वाहिशें है “निर्भीक”
जो अब दिल में दहकते है

                                          प्रकाश यादव “निर्भीक”
                                          बड़ौदा -30-05-2015

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