दर ब दर वो
शामियाना ढूंढते है
फिर वही
झुमका पुराना ढूंढते है
उदासी का सबब
क्या पूछते हो
तेरे शहर में
आशियाना ढूंढते है
उजड़ गई
मोहब्बत की बगिया
फिर नया कोई
ठिकाना ढूंढते है
पूछ लेना आकर
रंजो गम मेरी
नगमा यादों के
पुराना ढूंढते है
न रहे किसी
को कोई शिकायत
गुजरा हुआ वो
जमाना ढूंढते है
शरीक होगा
फिर मेरे सफर में
तुझ सा पागल
दीवाना ढूंढते है
हमारा क्या हम
आशिक ठहरे
मौसम अक्सर सुहाना
ढूंढते है
जिंदगी जीने
का नाम है यारो
फिर साकी व पैमाना
ढूंढते है
पीछे जो छूटी
ख्वाहिशे अपनी
प्यारी सी
वही तमन्ना ढूंढते है
“निर्भीक” कब
डरा है किसी से
निडरता का वो
तराना ढूंढते है
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 15.03.2016
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