कहो क्या नाम
दूँ तुम्हें
सुबह का सकूँ
हो तुम
दोपहर की छाव
हो तुम
शाम की
मधुशाला
रात की चैन
हो तुम
कहो क्या नाम
दूँ तुम्हें ...
ख़्वाब की
मालिका हो तुम
हकीकत की
चादर हो तुम
संगीत है तेरे
पायल में
ईश की वन्दना
हो तुम
कहो क्या नाम
दूँ तुम्हें ....
प्रेम शिखा
की तुम तरु
किसी की
आराधना तुम
साथ लाती हो
प्रभा किरण
अतीत की हो तमन्ना
तुम
कहो क्या नाम
दूँ तुम्हें .....
अनुपम तो
तेरी है छवि
विहंगम है
तेरी वो हंसी
जुल्फ ज्यों
कोई मेघ घने
सावन की
बरसात हो तुम
कहो क्या नाम
दूँ तुम्हें .....
कविता की तुम
उद्गम बिन्दु
झरना सी झर
झर बहती हो
कल कल करती
पास गुजरती
“निर्भीक” से
कुछ न कहती हो
कहो क्या नाम
दूँ तुम्हें ........
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 28-02-2016
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