Friday, April 15, 2016

-:तुम्हारी अदा :-


 

 

तुम्हारी हर अदा

भाति है मुझे

कभी सुबह की

गुलाब सा खिलता

शबनमी चेहरा

तो कभी अल्हड़ सी

मदमस्त यौवन में

इठलाती हुई कमसिन

तेरी अदायगी 

कभी गंभीर मुद्रा में

सोचती हुई

भूत, वर्तमान और

भविष्य को

तो कभी शृगार में

सजी संवरी

किसी शायर की

मदहोश नायिका

कभी चंचल शोख

बसंती बयार बन

ललचाती भँवरों को

रसपान को -

कलियों के संग

सांझ की अप्रतिम

मधुर बेला में

तुम्हारी हर अदा 

सम्मोहित करती है

नजाकत के साथ

जिसके संग जी लेता हूँ

पलभर ही सही

तुमसे दूर रहकर

कोमल अहसास लेकर  

तुम्हारे संग  

“निर्भीक” होकर ......

            प्रकाश यादव “निर्भीक”

            बड़ौदा – 10.03.2016

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