-: फ़जाओं में
खुशबू:-
फ़जाओं में
खुशबू बिखरने लगी है
हवाओं में
चिड़ियाँ चहकने लगी है
मत काटो कोई
कोमल पंख उनके
उन्मुक्त गगन
में वो उड़ने लगी है
बसंती बयारों
संग बाबरा है कोई
प्रेमिका
बाबरी गुनगुनाने लगी है
दरिंदों को
रोको भला अब कोई
मासूम कली
फिर खिलने लगी है
गुलशन उजड़ ना
जाये मुहब्बत के
खिलकर
फूलबाड़ी महकने लगी है
बांधके कब रख
पाया है नदी को
धारा सी कल
कल वो बहने लगी है
याद कर तू
कभी पल गुजरा हुआ
छुपकर वो
जीती है, डरने लगी है
न कर कैद फिर
रिवाजों बंधन में
पायल पहनकर
वो सँवरने लगी है
कह दो माँ से
लगा दे काला टीका
देखो ना कैसे
वो निखरने लगी है
“निर्भीक” के
आशियाँ में रहने दो
जाने से अब
कहीं मुकरने लगी है
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 29-02-2016
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