कविता
सरिता हो
तुम
मेरी
भावनाओं की
बहती हो
कल कल
निर्झर
निश्चल
जीवन में
पल पल
कविता तुम
याद हो बचपन
की
अल्हड़पन जवानी
का
इज़हार इश्क
का
प्यार एक
तरफा
और एक
संसार हो तुम
जहां जी
लेता हूँ
हंसी की
गुलदस्ता में
उदासी की
साया में
अपनों की
याद में
तुम्हारी
सुखद छाया में
जब भी
खुशी और
गम का
मौसम आया
कविता फिर
भी तुम
कुछ नहीं
बोलती
सह लेती
हो
चुपचाप
मुझको
ढाढ़स
देती हो
वेदना
में तुम
रंग भरती
हो
खुशियों
में तुम
संग संग
चलती हो
सफर में
तुम
क्योंकि
तुम हमसफर हो
वन्दना
हो ईश की
कल्पना
हो मन की
तमन्ना
अनछुई सी
जिसका
अटूट संबंध है
तुम्हारे
और मेरे बीच
अतीत से
वर्तमान
होकर और
भविष्य
के असीम
डगर तक
अंतहीन ............
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 22.03.2016
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