-:तुम्हारी चाहत में :-
तुम्हें चाहने का
यह मतलब नहीं
कि मैं आवारा हूँ
मिलता है सकूँ
देखकर तुम्हें
बात करके तुमसे
और तुम्हारी तस्वीर से
इसका अर्थ
यह हरगिज नहीं
कि मैं बाबरा हूँ
बन जाती हो तुम
अक्सर उद्गम बिंदु
मेरी हर एक
अद्भुत रचना की
यह मत समझना
कि मैं बे किनारा हूँ
समझ है मुझमें
अदब की
तुम्हारी चाहत में
मगर सुन लेता हूँ
कभी कभी दिल की
जो चुभती है
तुम्हारे दिल को
चुभन सी लगती है
मुझे भी यह जानकर
कि क्या हक़ है
मेरा तुम पर
कुछ भी तो नहीं
महज भावनाओं का
अटूट रिश्ता है
साहित्यिक दुनियाँ में
जिसमें मैं जीता हूँ
“निर्भीक” होकर
बस अपनी खातिर............
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बड़ौदा –
20.03.2016
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