Friday, April 15, 2016

-:अनकहे अहसास :-


-:अनकहे अहसास :-

 

क्या है तुम्हारी

तस्वीर में

तुमको क्या पता

जाकर उनसे पुछो

जो नदी किनारे

बैठकर निहारता है

तुम्हारी परछाई को

निर्मल कल कल

बहती जलधारा में

बातें करता है

खुद को भूलकर

तुम्हारे नशीले आँखों से

अंगुलियाँ फेरता है

उन ज़ुल्फों पर

जो बचा रखा है 

तुम्हारे रुखसार की

अप्रतिम आभा को

चिलचिलाती धूप से

तुम्हारे फिरोजी होंठों से

कही अनकही बातें

अनकहे अहसास बनकर

जेहन में रहती है उनकी

तुमको लेकर अक्सर

भोर से सांझ तक

जी लेता है कोई

अपनी पूरी जिंदगी 

उसी क्षण

तुमसे दूर रहकर भी

तुम्हारे साथ होकर

जरूरी नहीं है साथ रहना  

रूह का रूह से

मिलन के लिए  

जो जीवन का

अंतिम पड़ाव है

जहाँ सारी दूरियाँ

सिमट जाती है

एक दिन एक दूजे के लिए

और तुम कहती हो

क्या रखा है तुम्हारी

तस्वीर में .......  

                प्रकाश यादव “निर्भीक”

            बड़ौदा – 29-03-2016

 

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