जी करता
है -
जब्त कर
लूँ
तुम्हारे
फिरोजी
होंठों
की हंसी को
शबनबी
गुलाब के
कोमल
पंखुड़ियों में
और रख
दूँ सहेजकर
अपने
हाथों से
सिरहाने
के नीचे
तुम्हारे
गेसूओं में
लपेटकर –
जिसकी
भीगी खुशबू
महका
करेगी रातभर
मेरे
हरेक साँस के साथ
जी करता
है -
पी लूँ
सारा मदिरा
तुम्हारे
मदिरालय का
मदभरे
नयनों से
और खो
जाऊँ बेफिक्र
अपनी
दुनियाँ में
जहाँ मैं
और तुम
और कोई न
हो
पलभर के
लिए भी
जी करता
है
जी लूँ
जीभर
इस दो पल
की
क्षणभंगुर
जिंदगी को
क्या
ठिकाना कल हो न हो
ये
फिरोजी होंठ
ये मदभरी
आंखे
गुलाब के
पंखुड़ियाँ सरीखे
ये
रुखसार तेरे
और एक कण
में लटकते
कंचन की
वो बाली
जो
अनायास खींच लेती है
मुझे
तुम्हारी ओर ..........
प्रकाश यादव
“निर्भीक”
बड़ौदा
– 30.03.2016
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