तुम जबसे मिले हो
तो ये लगता है
कि सारा जहां ही
मिल गया है मुझको
उदासी की चादर
अब हट गई है
तेरे फिरोजी होंठों की
मधुर मुस्कान पाकर
जीवंत हो गई है फिर से
मुरझाई हुई लतिका
सुने पड़े जीवन की
तुम्हारी सुरमई अखियों
ने
दे दिया है उपहार मुझे
चैन की सुबह ओ शाम
अलसाई सुबह में
बंद पलकों के भीतर
बंद रहती है तुम्हारी
छवि
जिसे देखने को
सुबह की किरण
चुपके से आ जाती है
खुली पड़ी खिड़की से
तुम्हारी अल्हड़ सी अदा
कंचन सी कामिनी को
और भी मधुरम कर देती है
तुम जो आ गए हो
चुपके से मेरे ख्वाबों
में
मैं तो खुद को खो बैठा
तुम्हारा होकर
सिर्फ तुम्हारे लिए
सारा जहां छोड़ दिया
बस एक जहां के लिए
जिसमें तुम और सिर्फ
तुम
बसती हो मेरे लिए
तुम जबसे मिले हो
तो ये लगता है .......
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 29-04-2016
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