Saturday, June 04, 2016

-: प्यार की खुशबू:-


इतने वर्षों के बाद
क्यों पूछ रहे हो आज
तुम मुझसे मेरी खैरियत
जबकि मैं कब का
भूल चुका हूँ तुम्हारे साथ  
बिताए उन लम्हों को
दफना दिया है उनको
यादों के कब्रिस्तान में
यह सोचकर कि
तुम भी भूल गई होगी
उन पलों को समय के साथ
उलझ कर गृहस्थी में
क्यों छेड़ दी तुमने
आज फिर हृदय के
नाजुक तंतुओं को जो
स्पंदन करना बंद कर दिया था
तुम्हारे जाने के बाद
प्रेमाराग का आलाप
उजड़े चमन में फिर से
क्यों जिद्द करने लगी हो
प्यार की खुशबू के लिए  
गुजरे यादों के अहसास 
बहुत है एक दूसरे को
हमेशा याद रखने के लिए  
रूह का मिलन काफी है
एक पाक रिश्ता निभाने को  
शरीर तो नश्वर है
सांसारिक जीवन में
हाँ अहसास आज भी जिंदा है
दिल में तुम्हारे लिए
मगर पहले की तरह नहीं
मैंने अपना आशियाना
बना डाला है मुहब्बत का
खिल चुके है फूल
हकीकत की दुनियाँ में
सपनों के उसी नीले
आकाश के तले जहाँ हमने
बनाया था मिलकर घरौंदा
अपने नाजुक हाथों से ....

       प्रकाश यादव “निर्भीक” 23.05.16 

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