तुम्हारी खुशी की खातिर तुम्हारा शहर छोड़ दिया
तुम रहो मेरी आँखों में मिलाना नजर छोड़ दिया
कह दो मेरी वफ़ाई में क्या कमी रहा गई मुझसे
मेरे ख्वाबों में आना तुम अब अक्सर छोड़ दिया
कहती थी मुझसे गुलाब ए खूशबू रहूँगी आँगन में
और गुलशन में ही आना शाम व सहर छोड़ दिया
चलो मिल लेते है एक बार फिर अनजान बनकर
जिनसे टूटा दिल तुम्हारा पीछे वो पत्थर छोड़ दिया
जी लो जीभर जमाने में दो दिन की ही है जिंदगी
नफरत रहता है जिधर “निर्भीक” वो डगर छोड़ दिया
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बड़ौदा
– 10.04.2016
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