जी चाहता
है-
डूब जाने
को
अक्सर तुम्हारी
झील सी
गहरी
इन आँखों
में
क्योंकि
नयनों को
पढ़ने से
जी नहीं
भरता
पलकों के
कोर में
बनके काजल
रहने को
बरबस
जी चाहता
है-
ताकि मैं
पी सकूँ
तुम्हारे
आँसू
दर्द के
जो
अक्सर
छलक जाते
है
वक़्त
बेवक्त
मिल जाये
पनाह
तुम्हारे
बंद पलकों में
ताकि पढ़
लूँ
तुम्हारे
प्यासे नयनों की
अनकही वो
भाषा
जो कह
नहीं पाती हो
अपने
लबों से
दुनियाँ के
रिवाज़ के
सीमित
दायरे में
जी चाहता
है -
मृग मरिचिका
न हो
मेरी मृग
नयनी
और कह
दे
इशारों
इशारों में
दिल में
दबे
दिल की
बातें
अपने दिल
से
जी चाहता
है ......
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बड़ौदा –
01.04.2016
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