आज क्यों मैं अकेला
महसूस करता हूँ
दुनियाँ की भीड़ में
सिर्फ आपके बिना
सबकुछ है मेरे चारो तरफ
जिंदगी जीने के लिए
जिसको देने की जिद में
रख दिए आपने तहखाने में
अपनी जिंदगी के
सारे एशो आराम
यह सोच कर कि
मैं जी सकूँ जीवन
सुख और चैन का
मेरी थोड़ी सी तकलीफ़ भी
कर देती थी बेचैन आपको
तभी तो आप मुझे
अपने कंधों पर बिठाकर
शहर से गाँव तक
अंधेरी रात में
एक टॉर्च के सहारे
लाये थे कहीं बिना रुके
जब टूटा था मेरा हाथ
साईकिल चलाते हुए
यही सोचकर न
कि थोड़ा सा भी दर्द न हो मुझे
और कभी इजहार नहीं किया
अपनी किसी ख़्वाहिश का
बस मेरी ख़्वाहिशों को
करते रहे पूरा जीवन भर
यही तो करता है एक पिता
अपने बच्चों को के लिए
आज भी आपको हर पर
महसूस करता हूँ बाबूजी
और नहीं रोक पाता हूँ
आँखों से बहते इन आँसूओ को
जो बंद हैं आँखों में
अनकहे एहसास बनकर
आपके जाने के बाद
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 04.05.2016
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