नीले घूँघट में बैठी
मुस्कुराती मन्द मन्द
देखती सपनों में
अपने प्रियतम को
मदभरे आँखों में
मादकता लिए
फिरोजी होंठो में
शबनमी तर लेकर
वो कितनी प्यारी
लग रही थी आज
जिसे देख ठहर गया मैं
सहसा चहल कदमी करते
पार्क के एक कोने में ।
सुबह की पहली किरण
मानो वो भी रुक गई हो
साथ मेरे निहारने को
उस पूनम की शीतलता
जो जगजाहिर है
अपनी चाँदनी रात में
क्यों न रुके कोई
देखकर इसे घूँघट में
घूँघट मिलती है कहाँ
अब देखने को
पाश्चात्य संस्कृति में
जो जीवन को सरस और
सुमधुर बनाती थी कभी
आपसी सम्बन्धों को
छुप छुपकर देखना
फिर छुप जाना घूँघट में
ऐसी मनोहरी दृश्य
कहाँ मिलती है अब
तभी तो ठहर गया मैं
सहसा मनमोहक
पूनम की दीदार को .....
प्रकाश यादव
“निर्भीक”
बड़ौदा – 11.04.2016
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