मोहब्बत की गलियाँ भुला दो
यह दुनियाँ बहुत ही बेरुखी है
सारी खुशियाँ सरेआम लूटा दो
खुशियों से यह जमाना दुखी है
गुल सारे गुलशन के छिपा दो
सबकी नजरें इसी पर टिकी है
प्यार का आशियाँ महफ़ूज नहीं
नीड़ दरजिन की यहीं उजड़ी है
संग जीने की चाह अच्छी नहीं
मिलकर वो जिगर से बिछड़ी है
अक्स आँखों से न बहाओ तुम
विघ्न व बाधा यहाँ हर घड़ी है
अजीज से अलग हाल है कैसा
जीना “निर्भीक” का जान पड़ी है
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बड़ौदा
– 31.03.2016
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