कितनी मधुर व सुकोमल हो
मृदुल हंसी कोमल कोपल हो
जी चाहता है बस देखता रहूँ
लिए नयन जो तुम चंचल हो
ले मुस्कान फिरोजी होंठो पर
जीवंत जीवन तेरा अधर हो
अनुपम कृति तू हो खुदा की
बसती आँखों में अक्सर हो
जुल्फ बिखरे रुखसार पे तेरे
अदा में लगती सुंदरतम हो
जब भी देखूँ ये छवि तुम्हारी
मानो छटा कोई विहंगम हो
तन से मन से तुम हो सुंदर
हृदय से बिलकुल निर्मल हो
नजर लगे न दुनियाँ की अब
जब तक पलकों में काजल हो
तुम प्यार किसी का अद्भुत हो
सौम्य सूरत की मालिका हो
सादा जीवन तेरा उच्च विचार
मधुबन की प्यारी कलिका हो
भोर की शबनम दीप सांझ का
झरना सी बहती झर झर हो
“निर्भीक” होकर जीती जीवन
तुम सफ़ेद धवल संगमरमर हो
प्रकाश यादव
“निर्भीक”
बड़ौदा –
02.04.2016
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