मिले हो तुम सफर
में
महज इत्तेफ़ाक है
समझ मत लेना
तुझ बिन सब खाक है
हाँ हंसी के कुछ पल
गुजरे है साथ तेरे
सुनो ! मेरा भी एक
खुशहाल घर बार है
किसी के सहारे
खुश रहा नहीं कोई
दिल लगाकर तोड़ना
सदियों से व्यापार है
लौटकर परिंदा फिर
आता है खुद घोंसला
बाहरी दुनियाँ में
बस क्षणिक बहार है
ये रूप, ये रंग, ये अदा
जो मिले है तुझको
कर लो आँखें बंद
तो सब बेकार है
हो तुम यादों में
यह खुशनशीबी है मेरी
रहोगे ताउम्र
योंहि
तेरा स्नेहिल जो प्यार है
गर चाहा किसी को
तो चाहो उम्र भर
जीवन का यही तो
एक अद्भुत शृंगार है
तुम मिले हो सफर में
यह महज इत्तेफाक़ है
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 14-06-2016
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