Saturday, June 04, 2016

-:मुस्कुराते रहना :-


तुम ऐसे ही अक्सर
मुस्कुराते रहना ताउम्र 
देखता रहूँगा मैं अपलक
तेरे फिरोजी लबों को
डूब जाऊंगा तुम्हारी
इन आँखों में जिनकी मदिरा
पीकर नहीं बल्कि
देखने मात्र से मैं
मदमस्त भँवरा बन
मँडराता रहूँगा तुम्हारे इर्दगिर्द
तुम्हारे रुखसार जो
गुलाब के पंखुड़ियों सी
सलोनी है तुम्हारी तरह
और बिखेरती है चाँदनी 
पूनम रात में
अमावश्य की स्याह रात के बाद
यही तो अहसास कराती हो
अपनी श्वेत श्याम तस्वीर में
श्वेत  श्याम ही तो
जिंदगी की वास्तविकता है
कोई बनावटीपन नहीं इसमें
जिसकी चमक सदा से
अपरिवर्तित और लुभावनी रही है
और कुछ अर्चना नहीं है
अपने रब से
बस छोटी सी मेरी आरजू है उनसे
कि अनुराग का प्रकाश योंहि
बिखेरते रहना निर्भीकता के साथ
क्योंकि तुम और तुम्हारी छवि
एक कल कल सी बहती सरिता है
जिनकी निर्मल प्रवाह में
बहती रहती है मेरी कविता
संग संग तुम्हारे ......
                  प्रकाश यादव “निर्भीक”
                  बड़ौदा – 24.04.2016


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