प्रेम में अधिकार
दिया नहीं जाता
बल्कि खुद ब खुद
हो जाता है
एक दूसरे पर
प्रेमरस भिंगो देता है
प्रेमालाय में -
प्रेमी को इस कदर
कि दो जिस्म होकर भी
तन और मन से
एक जान रहता है वह
बिन कहे महसूस
कर लेता है हमेशा
मन की भावनाओं को
जब भी जरूरत होती है
एक दूसरे की
शर्तो पर नहीं होती है
कभी सफर जीवन में
प्रेम डगर पर
इसमें तो अक्सर
कटु वाणी भी मधुर लगती
है
एक दूसरे को
चाहे जितना चाहो
दूर करने को खुद को
दूर हो नहीं पाता
दूर होकर भी कभी
क्योंकि प्रेम एक
आत्मीय
बंधन है पारस्परिक
मधुर रिश्तों के
जिसे देखा नहीं बल्कि
महसूस किया जा सकता है
अन्तर्मन की दृष्टि से .......
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 10-06-2016
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