Saturday, June 04, 2016

-:गलतफहमी में :-



मैं अधीर हो
रह न सका दूर
तुमसे पलभर भी
तुम्हारे न चाहते हुये
कह डाली मन की बातें
आतुर होकर
बिना सोचे समझे
एक बच्चा की भांति  
कि तुम मेरे हो
आतुरतावश मैंने
मान लिया तुमको
अपना सुकून का घर
जो अक्सर देता है
शरण नेह का
जब भी कोई
थका हारा निराश हो
आता है अपना घर
सांझ को लौटकर
बाहरी दुनियाँ से
पता नहीं यह
मेरी अज्ञानता है या
एक तरफा प्यार 
जिसमें लगता है कि
मेरी जैसी ही सोच
तुम्हारी भी होगी
मेरे प्रति प्रेम का
अगर न हो तुम्हारी
आँखों में जगह मेरी
तो कभी इजहार
मत करना मुझसे
क्योंकि मुझे जी लेने दो
गलतफहमी में ही
कि तुम मेरे हो
और कहता रहूँ अक्सर
पहले की तरह तुमसे
दिल की बातें
तुम्हारे न चाहते हुये  
              प्रकाश यादव “निर्भीक”

            बड़ौदा – 11.04.2016 

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