रोक दिया तुमने
लिखने से मुझे
यह कहकर कि
तुम्हें अच्छा नहीं
लगता
कोई लिखे तुम पर
तुम्हारी तस्वीर के
सहारे
क्या कभी सोचा तुमने
कोई बाँध पाया है
आज तक नदी को
अपनी धारा के संग
बहते हुए - नहीं न !
क्या रोक पाया है कोई
आज तलक मधुप को
मधुमास में –
मधुबन में मधुपान से
नहीं न ! फिर तुम
क्यों रोक रही हो
मेरी भावनाओं को
जो निर्मल धारा सी
बहती है जिसकी
पवित्र उद्गम बिन्दु
तुम और सिर्फ तुम हो
क्यों वंचित कर रही हो
मन भ्रमर को -
गेसूओं से आते खूशबूओं
से
जबकि तुम हर सुबह
ओस में नहाकर
आती हो आँखों के सामने
एक नये रूप में
और कहती हो मुझसे
न बहने दूँ अपनी
भावनाओं की धारा को
अविरल प्रवाह में
सौंधी खूशबू लेकर
होकर साथ तुम्हारा .....
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा -18-04-2216
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