‘इंशा’ जी
उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या
मतलबी है सब यहाँ मतलबी शहर में दिल को दुखाना क्या
जी लो तुम खुद को जीभर जब भी तुमको वो वक्त मिले
किसने देखा कल क्या होगा बीते वक्त पर फिर रोना क्या
प्यार करोगे तो प्यार मिलेगा गिरह जिगर में बाँध लो तुम
नफरत तो दिल को तोड़ती है खोना क्या फिर पाना क्या
दो दिन की यह जिंदगी है सजा दो मोहब्बत का बाग तुम
गुलों से है गुलशन सारा जहां दिल काँटों से लगाना क्या
कमजोर को अक्सर दबाया गया रीत जगत की जानो तू
“निर्भीक” जीवन ही जीवन है और जीवन फिर जीना क्या
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 11.03.2016
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