Friday, April 15, 2016

-: जिंदगी तुम न रूठो:-


 

 

जिंदगी तुम न रूठो मुझसे

प्यार का वो मौसम कहाँ है

बढ़ गई है दूरी जो अपनी

मनुहार सा मौसम कहाँ है

 

हर तरफ वेबसी का आलम

फुर्सत के वो दो पल कहाँ है

रिश्तों की नहीं है अहमियत

प्रेम का अब आँगन कहाँ है

 

जिसको थी फिकर चल बसे

मेरी किसी को जरूरत कहाँ है

यादों के बादल में मैं हूँ छिपा

किसी की वो मुहब्बत कहाँ है 

 

बाबूजी के स्नेह से हूँ ओझल

अपनी मिट्टी की खुशबू कहाँ है

माँ की ममता से हूँ दूर बैठा

सुकूने आँचल अब तो कहाँ है

 

हर किसी को बढ़ने की चाहत

इंसानियत की कीमत कहाँ है

निगाहों में कांटे से है लगते

इंसानी सी वो सीरत कहाँ है

 

आओ ढूँढ ले खुशी के दो पल

रूठने से कुछ मिलना कहाँ है

बीत जायेगा ये वक़्त “निर्भीक”

गुजरा वो वक्त आना कहाँ है 

                  प्रकाश यादव “निर्भीक”

                  बड़ौदा – 14.03.2016

 

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