बहुत दिनों बाद
फिर आज नींद
नहीं आ रही है
कोशिशों के बाबजूद
बीती बातें दूर
नहीं जा रही है
जी लेना चाहता हूँ
वर्तमान में लेकिन
यादें नहीं जा रही है
क्यों लगता है जाना
आपका मुनासिब नहीं था
इस अपेक्षित वक्त में
जो वक्त था
आपके सपनों के
जिसे देखा था आपने
जीवन के उन पलों में
जहाँ सपने झूठे
लगते हैं सभी को
मगर एक उम्मीद थी
आपको मुझसे -
मेरे नाम के अनुरूप
सामने छाये तम को
दूर करने की
और मुझे विश्वास था
आपके कृतित्व पर
जहाँ से मिलती थी मुझे
एक अदृश्य शक्ति
मंजिल को छू लेने की
पथरीली डगर से होकर
बिना किसी रुकावट के
और जब मैं आज
देखता हूँ मुड़कर
अपने अतीत के पन्नों को
तो आप और सिर्फ
आप दिखाई देते हैं
सपनों के साथ जीते हुए
..............
प्रकाश यादव
“निर्भीक”
बड़ौदा – 23-09-2015
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