Saturday, November 07, 2015

-:किसी महफिल में :-





देखो वो खड़ी
बोल रही है
मन की बातें
कहीं दूर किसी
महफिल में
धवल वस्त्र पहनी   
सफ़ेद गुलाब सी
निखर रही है
निर्मल सरिता में
कजरारे आँखों से
कह रही है
वो सब बातें
जो कह नहीं पाती
खुलकर कभी मुख से 
मोती माणिक
अनामिका में
इतरा रही है
संग पाकर ऐसे
मानो बरसों की
गहन तपस्या हो
साथ जीने की
संगमरमर बनकर 
मन उद्वेलित
हो जाता है
देख उसे इस कदर
निगाह से दूर
किसी उपवन में
महकते हुए
अपने चहेते फूल को
जिक्र तो मेरा भी
होता है सरेआम
उसकी शायरी में
मगर लिखकर
मिटा देती है
एक दफा यह सोच
कि कहीं दुनियाँ को
न लग जाये भनक इसकी
              प्रकाश यादव “निर्भीक”
              बड़ौदा – 07-09-2015  

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