तिरछी
नजरे पूरी रात सोने न दिया
जागता
रहा वो लम्हात सोने न दिया
तुम्हें
भूल जाऊँ या रखूँ याद सदा
दिल
में रही जो बात सोने न दिया
ख़्वाहिश
थी सफर साथ चलने की
अधूरी
अपनी मुलाक़ात सोने न दिया
कह
दूँ दिल की हर एक बात तुम्हें
न
कहने की हालात ने सोने न दिया
हर
सीप को मयस्सर नहीं स्वाति बूंद
यही
एक सवालात ने सोने न दिया
दिल्ली दूर नहीं तुमसे मिलने की
उमड़ते
ये जज़्बात ने सोने न दिया
तुम्हीं
हो मेरी ख़यालों की मलिका
मन
बसे ये खयालात सोने न दिया
यों
तो रूबरू न हो सका अबतलक
मोहब्बत
की सौगात ने सोने न दिया
कहते
सब शायर दिलफेंक दीवाना है
लगा
दिल में आघात सोने न दिया
साफ
दिल का कद्र कहाँ होता है यहाँ
दुनियाँ
की यही करामात सोने न दिया
क्यों
किया ज़िकर किसी से “निर्भीक”
आंसूओं
की ये बारात सोने न दिया
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 04-11-2015
No comments:
Post a Comment