तुमसे नाराज
नहीं
बस योंहि खफा
हूँ
मैं खुद से
कि क्यों
चाहा तुम्हें
इतना जो हक
न था मेरा
तुझपे
क्यों फिदा
हो गया
देख तुम्हारी
अदा
और सौम्य
सूरत को
यह समझकर
तुम सकुन का
ठौर हो
मेरे जीवन का
जब चाहूँ जाकर
मधुर छाव में
चैन के कुछ पल
व्यतीत कर लूँगा
यह तो भ्रम
था
मृग मिरीचिका
सी
जिसके पीछे
भागने से
कुछ हासिल
नहीं होता
सिवाय खुद को
तड़पाने के
सही तो कहा
है
किसी ने कि
हर चमकती
वस्तु
सोना नहीं
होता
तुम्हारी ही
तरह
मगर इतना करना
फिर कभी किसी
को
पनाह न देना
तनिक भी अपने
साये में
वरना उसे भी
सहना होगा
दर्द
किसी को
चाहने का................
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 15-09-2015
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