किस किस की
सुनाऊँ बात साहब
सबने तो किया
है आघात साहब
जब भी जी
चाहा पास आने को
दूर जाने को
किया बालात साहब
छूने की
कोशिश की गुलाब तो
काँटों से
चुपके किया घात साहब
दिल अपना जब
दिल को दिया
कद्र न वो किया
जज़्बात साहब
चलते तो रहे
हम राहे वफा पर
बेवफाई का
दिया सौगात साहब
बहुत है
जालिम इस जमाने में
बड़ा नाजुक है
ये हालात साहब
सच को छिपाया
जाता अक्सर
झूठ फलता है
दिन रात साहब
अच्छी परवरिश
है “निर्भीक” की
दिखायेगा कभी
औकात साहब
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 21-09-2015
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