आज देख
तुम्हें और तुम्हारी
तहरीर को
नए अंदाज में
अचंभित हो
सोचने लगा
तुम्हारे अंदर
पल रहे उस
नारी शक्ति की
जलती हुई लौ
के बारे में
जिसे लेकर
समय समय पर
अपना परिचय
दिया है
अतीत के पन्नों में
भारतीय स्त्री ने
यह सोचना
शायद गलत है
कि सिर्फ
कोमल हृदय का
वास है तुम्हारे अंदर
बल्कि जीवन के
बदलते रूप में
तुम खुद को
बदल लेती हो
वक्त के हिसाब से
कभी कच्चे धागे में
एक अटूट बंधन
बांध देती हो
जीवन भर के लिए
तो कभी
प्रचंड रूप में
करती हो विनाश
अत्याचारियों का
तो कभी शांति का
पाठ पढ़ा देती हो
दुनियाँ को
हाँ बदल डालो
अपने आपको
अपने हिसाब से
मगर अपने
मूल स्वरूप को
कभी मत बदलना
जिस पर फक्र है
सदियों से ...........
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 28-08-2015
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