तुमसे
झगड़ने का कभी मन तो नहीं था
देख
मुड़ोगे तुम कहा नयन तो नहीं था
तुम्हारी
खूबसूरती का कायल था कभी
होने
को तुम्हारा अन्तर्मन तो नहीं था
बेवजह
गरुर तुम्हें अपनी शोहरत पर
देखा
किसी चेहरे में शिकन तो नहीं था
मिट्टी
के ही तो बने है सारे सूरत यहाँ
सीरत
में देखा कभी ऊफन तो नहीं था
लद
जाते है जो पेड़ कभी यहाँ फूलों से
जरा
सी उनमें कभी अकड़न तो नहीं था
नाजुक
कली हरे पत्तों संग महफूज यहाँ
देखा
साथ काँटों का चुभन तो नहीं था
कभी
सौंधी खूशबू आती थी उस तरफ से
देखा
आज उधर वो गुलशन तो नहीं था
हसीं
वादियों में गुजरे वो अपने लम्हात
अब
तेज झोखों सा वो पवन तो नहीं था
छुपाई
थी गेसूओं में आंधियों की डर से
आज
तेरे बाहों में वो तड़पन तो नहीं था
बड़ी
शिद्दत से तराशा तमन्नाओं में तुम्हें
“निर्भीक”
का दूजा कोई सुमन तो नहीं था
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 29-10-2015
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