तुम्हें देखे
बगैर चैन नहीं
ये कैसी
बेकरारी हो गई है
काजल लगाई हो
पहले भी
अब क्यों कजरारी
हो गई है
रह लेते थे
तुमसे दूर कभी
अब क्यों
लाचारी हो गई है
जब उठूँ तो
तुम्हें ही देखूँ
कैसी अब
खुमारी हो गई है
तुम्हारी
सूरत देखते देखते
इश्क की
बीमारी हो गई है
छुपा लेती हो
मुख दिखाकर
आदत ये
तुम्हारी हो गई है
हंसी जो
बिखरे लबों पे तेरी
लगे कोई
चिंगारी हो गई है
झुलस न जाऊँ
प्यार में तेरे
ढंग पतिंगा
हमारी हो गई है
ले लो हमें
आगोश में अपनी
अब साँझ की
तैयारी हो गई है
रह लेंगे
रातभर पंखुड़ियों संग
अब तो मेरी
बारी हो गई है
देखा “निर्भीक”
मनमुग्ध होंठ
बेजान
दुनियाँ सारी हो गई है
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 04-11-2015
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