तेरे सुर्ख
होठों की लाली
काले कजरारे
नयन तेरे
बिंदिया दमके
ललाट पर
फिर मन क्यों
न तरसे
जुल्फ बिखरते
कंधों पर
दुपट्टे को
भी साथ लिए
तुम चली कहाँ
सज कर
मैं यहाँ खड़ा
दीदार लिए
चाँद सी ये
सूरत है तेरी
खड़ी मनमोहक
अदा लिए
बहक जाऊँ गर
मैं कभी
संभाल लेना
खुदा के लिए
न कोई गहना न
जेवर
आई यौवन
शृंगार लिए
कौन फिदा हुआ
नहीं
उम्मीद आँखें
चार लिए
है ईश से यही
वंदना
दिखो ऐसे
अहसास लिए
बुझा न कभी
मृगतृष्णा
रहूँ संग
तेरे प्यास लिए
सौभाग्य मेरा
क्या होगा
साथ भाग्य ही
आई हो
दूर सही पर
यह मानो
तू संग
दिवाली लाई हो
“निर्भीक” का
खुला हृदय
देहरी खड़ा
इजहार लिए
गर मिला
तुझसा दोस्त
गम नहीं
उम्रभर के लिए
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 02-11-2015
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