पग
पग पर तो हैं कांटे बिछे
किस
राह होकर अब जाऊँ मैं
सब
फूल प्यार के बिखर गए
कौन
सी बगिया अब जाऊँ मैं
नफरत
के बीज सब वो दिये
अब
प्रेमवृक्ष कहाँ से लाऊँ मैं
कडुआहट
से सब आहत हुये
अकुलित
मन कैसे सँवारूँ मैं
छल
कपट ने सब अंग चुभे
निश्छल
हृदय कैसे पाऊँ मैं
सब
कलुषित अब यहाँ हुए
सज्जन
जन कहाँ खोजूँ मैं
पल
पल रंग तो सब बदले
रंग
हिना कहाँ से लाऊँ मैं
पीठ
पीछे तो सब रंज हुए
मन
मीत कहाँ से लाऊँ मैं
बदले
बदले सब ये रीत हुए
मधुर
गीत अब कैसे गाऊँ मैं
उम्मीद
जिनसे वो बदल गए
इंसाफ
अब कहाँ से लाऊं मैं
चुपचाप
होकर सब लहू पिए
“निर्भीक”
को कैसे सुनाऊँ मैं
हर
मोड़ पर यहाँ रावण मिले
अब
राम कहाँ से लाऊँ मैं
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 13-10-2015
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