Saturday, November 07, 2015

-:कविता – मेरी हमसफर :-




कविता -
बहुत दिन हुए 
तुमसे बात किए
तुमको आत्मसात किए
खुद को खुद से
अलग रखकर 
दिल में दबे जज़्बात लिए
ढूँढता रहा गाँव गलीचे
कई शहर मोहल्ले
साथ प्रेम सौगात लिए
मिला न कहीं अब तक
तुम सा कोई  
निर्मल हृदय का
अनुपम उपहार लिए
जहाँ जगह है
मेरी भावनाओं की
अन्तर्मन की व्यथाओं की
सम्पूर्ण संसार लिए
मन की हर बात
रख दी जहाँ
जब चाहा जैसा चाहा
उफ़ तक न किया तुमने
कभी पलभर के लिए
बाकी रिश्ते वो
फकत दिखावा है
जो रहता संग अक्सर
सिर्फ मतलब के लिए
दूर जो रहा तुमसे
इतने दिनों तक
बाहरी दुनियाँ में
अपने हालात लिए
तब ये जाना कि
कविता सिर्फ तुम -
हमसफर थी, हो और
रहोगी ताउम्र के लिए.............
            प्रकाश यादव “निर्भीक”
            बड़ौदा – 17-10-2015

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