हर बार
कसम खाता हूँ
तुम्हें न देखने की
न तुम पर
कुछ भी लिखने की
और हर बार
टूट जाती है
ये मेरी कसमें
अपने आप या
तोड़ देती है
तुहारी आसक्ति
ये खबर नहीं
पर बेखबर हो
अपनी कसमों से
लिख देता हूँ
तुम पर
देख लेता हूँ
तुम्हें बार बार
न चाहते हुए भी
और हर बार की तरह
तुम्हारी सलाह
बेअसर नजर आती है
मुझ पर
ये मेरी हार है
या तुम्हारी जीत
मैं समझ नहीं पता
मगर इतना जनता हूँ
तसल्ली मिल जाती है
मेरे अन्तर्मन को
कुछ पल के लिए
तुमको अपने
और करीब पाकर
तस्वीर में ही सही
पहले की अपेक्षा
जिसे मैं कभी
खोना नहीं चाहता ...........
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 31-08-2015
No comments:
Post a Comment