Saturday, November 07, 2015

-: नई दुनियाँ बसाते है :-




मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारा
रहा है संदेश इनका भाईचारा
मानव अपने स्वार्थ के खातिर
मानवता को फिर क्यों मारा

वो जैन सिख और है ईसाई
मैं हिन्दू और तू मुसलमान
दिया नहीं धूप देखकर भाई
कभी सोचकर यह दिनमान 

बहती गंगा यमुना अक्सर 
सबकी तो प्यास बुझाती है
कभी न कहती कौन अपना
निर्मल जल ही पिलाती है 

धरती बांटा तू घर भी लूटा
क्या अंबर भी बाँट पाओगे
गरुर चूर हुआ है रावण का
क्या ऐसे राम बन पाओगे

कालिख पोती उन्माद किया
तुच्छ विचार इजहार किया
घर आये मेहमानों को भी
तुमने ऐसे ही प्यार किया

जन्म लिया तू भारत में तो
गौतम बुद्ध भी बनकर देखो
हम छोड़ चले जिस राह को
दुनियाँ उसको स्वीकार किया

हम गर्त में धकेले जाते है
अतीत गर्व को तो खोते है
कुछ ठीक है यह “निर्भीक”
चलो नई दुनियाँ बसाते है  
                  प्रकाश यादव “निर्भीक”
                  बड़ौदा – 21-10-2015

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