छोड़ देता
तेरा दामन गर दिल शिकायत नहीं करता
उजड़ जाती कब
ये दुनियाँ गर मोहब्बत नहीं करता
उदास रहती हो
क्यों चुपचाप तुम खुद की दुनियाँ में
और कहती हो
ये प्यार तुम्हारी हिफाजत नहीं करता
चाहने की तो
हिमाकत की थी तुम्हें अपना समझकर
पराया बनाकर
कहती हो मैं तेरी इज्जत नहीं करता
कभी दिल के
आईने में झाँककर परख लेना मुझको
फिर कहना
तुम्हारी खातिर कौन इबादत नहीं करता
तोड़ दी है
तुमने प्रेम की डोरी अभिमान में अपनी
गर होता मैं
तुम्हारी जगह तो वो जुर्रत नहीं करता
रहना तुम खुश
सदा अपने ही बनाए महफिल में
गर पता होता तुम्हारी
ये आदत चाहत नहीं करता
सजा ए वफा की
हसीन ये तौहफ़ा दिया है तुमने
भनक गर बेवफाई
की होती तो कविता नहीं करता
हो गई है
अपनी तो बेरुखी सहने की अब आदत
जानता अगर फितरत
तुम्हारी हसरत नहीं करता
चलो फिर मनाने
की कोशिश मैं करूंगा एक बार
गर मान जाता ये
“निर्भीक” वकालत नहीं करता
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 28-10-2015
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