जब जी करे
तुम चले आना
उसी बगिया में
बेहिचक -
जहाँ छोड़ गई हो
अपनी सुनहरी
ख्वाबों की दुनियाँ
जिसके भँवर से
आज तलक मैं
निकाल नहीं पाया
न जाने कितने
अरमान सजाये
हमने मिलकर
कच्ची मिट्टी के
सौंधी घरौंदों में
सहेजकर रखा है
अभी तक उन
हरे अहसासों को
तुम्हारे आने की
अदद उम्मीद में
देख जिसे तुम
लौट आओगे खुद में
पहले की तरह
कोई गिला न शिकवा
बस एक बार
फिर से जीना
चाहता हूँ तुम्हारे
व्याकुल आँखों में
जिन आँखों से
देखा था हमने
सतरंगी सपने
पूर्ण होते हुए
सम्पूर्ण जगत के
एक कोने में
जहाँ सिवाय
मेरे और तुम्हारे
कोई न हो
तुम चले आना
प्रकाश
यादव “निर्भीक”
बड़ौदा
– 04-09-2015
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