नित्य नई
छवि तुम्हारी
सुप्रभात है
मेरे जीवन का
तुम मानो या
न मानो
सुबहे गुल हो
मेरे उपवन का
खुशबू बिखरती
खुली बालों से
चमके तरन्नुम
तेरे नयनों के
देखूँ जो हंसी
स्निग्ध लबो पे
मन मुग्ध रहे
पल दिनभर का
शीतलता लेकर
मुखमंडल पर
तुम आती हो बन
चाँद पूनम का
चाह नहीं तुमसे
कुछ पाने की
बस भय है तो
तुम्हें खोने का
दूर भले बैठी हो
करीब तुम्हें ही
मैं तो पाता हूँ
तुम बोलो भी न
कुछ मुख से
सुनता सब हूँ
तेरे अन्तर्मन का
रहोगे प्रफुल्लित गर
तुम साँझ सवेरे
फिर होगी न कभी
आस दूजा का ................
प्रकाश यादव “निर्भीक”
बड़ौदा – 01-09-2015
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